Thursday, June 24, 2010

दादीमा

छोटी सी प्यारी सी अच्छी सी
दादीमा
सबका जो ध्यान रखे ऐसी है वो
दादीमा
छप्पन भोग बनाये ऐसी है वो
दादीमा
बच्चों के सिर में तेल लगाये
ऐसी है वो दादीमा
मेरे बालों में चोटी बनाये
ऐसी है वो दादीमा
क्यूँ चुप हो गयी हो अब
बोलो न कुछ दादीमा
मैं आई हूँ तुम्हारे पास
मुझे टोफ्फी क्यूँ नहीं देती दादीमा
आँखें तो खोली थी तुमने
तब मुझे क्या देखी थी तुम दादीमा
भगवान के घर चली गयी
और इस घर में हमें छोड़ गयी
क्या अब भी इस घर में
हमको तुम देखने आती हो दादीमा
हर पल तुम्हारा एहसास है
लगता है तू यहीं कहीं पास है
उसी बिस्तर पे खिड़की के पास
जैसे मुझे पुकार रही हो
मेरे बालों में चोटी बनाने के लिए...दादीमा

Saturday, June 19, 2010

पूनम का चाँद

आँखें जो देख रही थीं
दूर कहीं वीराने में
अचानक ही पलकें मिलते ही
अश्रुओं से सराबोर हो उठीं

ठिठक के बैठ गयी तब गोरी
दामन जब भीग नमकीन हो गया
वफ़ा के तराजू पर जब प्रेम को तौली
साजन का पलड़ा हल्का पड़ गया

कह के गया था साजन उसका
वो लौट के वापस आयेगा
वो आँखें बिछाये बैठी थी
किसी दिन तो चाँद आएगा

आये तो बस गर्म लू के थपेड़े
आयीं तो बस आंधी वर्षा
और फिर आयीं बर्फीली हवाएं
वो आँखें बिछाये बैठी थी
पूनम का चाँद तो आयेगा