
आज फिर ये मन कुछ सवाल कर बैठा
कुछ ुल्झे से सवालो के जवाब पूछ बैठा
क्या ये जीवन ेक छन्भन्गुर है..
जो ेक पल तो है पर अगले ही पल ओझल?
िस छोटे से जीवन मे
चाहत है तो बस ितनी
कुछ पल तितलियो सन्ग खेल लू
कुछ पल जुग्नुओ को पकड लू
िक डिब्बी हो जादू की
जिसमे रन्ग सभी समेट लू
जिसमे आसमान के तारे भर लू
जिसमे फूल सारे सजा लू
जिसमे गीत सारे भर लू
यही मेरी पून्जी हो
यही मेरी धरोहर
पर ाकस्मात ही ये सोच बैठ्ती हू
क्य ैसी चाहते जायज है
क्य जादू की डिब्बी मे ये सब कैद कर सकती हू
या फिर ये मुठ्ठी मे बन्द रेत की तरह है
जो मुठ्ठी खोलते ही फिसल जायेगे
बस फिसल जायेगे
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