ज़िंदगी जीने का जज़्बा रखने वाली तुम
कुछ पल में ही हवाएँ थम गई
कुछ पल में ही जिंदगी रुक गई
हम देखते रह गए नम आँखों से तुम्हें
हममें से ही निकलके हममें ही विलींन हो गई तुम
जो तीन पल ना साँस ले सकी थी तुम
वो तीन पल हम भी मरे थे
जो चली गई हमेशा के लिये तुम
तो हम भी यहाँ क्या जी सकेंगे
पर .... जीएँगे हम
जीएँगे हम... ये देखने के लिये कि
तुम व्यथॅ ही तो ना चली गई
जीएँगे हम... ये देखने के लिये कि
जो लौ तुम जला गई... वो लौ तो ना बुझ गई
और देखने के लिये कि ...
इंसाफ के तराजू क्या लौटाएँगे इज़्ज़तो-आबरू
इंसाफ के तराजू क्या लौटाएँगे गुमाने-गुरूर
उन उन्मुक्त हवाओं को हम फिर से दहलीज़ पे बुलाएँगे
ज़िंदगी जीने का जज़्बा तुमही से सीख़ें , ये प्रण लेंगे
तुम देखना - हम फिर से जीएँगे
लौ से लौ जलाकर – हम डटके जीएँगे
- मुनरिका गैंगरेप पीडिता को नम आँखों से भावभीनी श्रद्धांजलि
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